क्षारीय मृदा: कारण, प्रभाव और प्रबंधन
क्षारीय मृदा वह होती है जिसका pH मान 7.5 से अधिक होता है। ऐसी मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता कम हो जाती है और फसलों की वृद्धि प्रभावित होती है। यह मिट्टी मुख्य रूप से शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ कम वर्षा के कारण मिट्टी में लवण और कैल्शियम कार्बोनेट जमा हो जाते हैं।
क्षारीय मृदा के कारण
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कम वर्षा और अधिक वाष्पीकरण – इससे मिट्टी में लवण एकत्रित हो जाते हैं।
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सोडियम युक्त सिंचाई जल का अत्यधिक उपयोग – मिट्टी में क्षारीयता बढ़ जाती है।
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कैल्शियम कार्बोनेट का जमाव – मिट्टी अधिक क्षारीय हो जाती है और पोषक तत्वों की कमी उत्पन्न होती है।
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कुछ उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग – लंबे समय तक कुछ प्रकार के उर्वरकों के उपयोग से pH स्तर बढ़ जाता है।
फसलों पर प्रभाव
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पोषक तत्वों की कमी – लौह (Iron), जस्ता (Zinc), फॉस्फोरस (Phosphorus) और मैंगनीज (Manganese) की उपलब्धता घट जाती है।
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मिट्टी की खराब संरचना – इससे मिट्टी कठोर हो सकती है और जल निकासी में समस्या आती है।
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सूक्ष्मजीव गतिविधि में कमी – लाभकारी सूक्ष्मजीवों की संख्या कम हो जाती है, जिससे जैविक पदार्थों का विघटन प्रभावित होता है।
क्षारीय मृदा के लिए समाधान
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जिप्सम का उपयोग – जिप्सम सोडियम को कैल्शियम से बदल देता है जिससे मिट्टी की संरचना सुधरती है।
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जैविक पदार्थों का उपयोग – कंपोस्ट, गोबर खाद और मल्चिंग से pH स्तर घटता है और पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
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अम्लीय उर्वरकों का प्रयोग – अमोनियम सल्फेट, एलिमेंटल सल्फर या फेरस सल्फेट का उपयोग कर pH को कम किया जा सकता है।
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सिंचाई प्रबंधन – अच्छी गुणवत्ता वाले पानी और लीचिंग विधियों से अतिरिक्त लवणों को बाहर निकाला जा सकता है।