कृषि में ग्राफ्टिंग: उन्नत खेती के लिए पौधों का संयोजन
ग्राफ्टिंग एक पारंपरिक बागवानी तकनीक है, जिसमें दो पौधों के भागों—सायन (ऊपरी भाग) और रूटस्टॉक (निचला भाग)—को इस प्रकार जोड़ा जाता है कि वे एक साथ मिलकर एक नया, अधिक सक्षम पौधा बनाते हैं। इस विधि से पौधों की विशेषताओं को संयोजित किया जा सकता है, जैसे कि रोग प्रतिरोधकता, बेहतर उपज, और विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रति अनुकूलन क्षमता।
ग्राफ्टिंग की प्रक्रिया
ग्राफ्टिंग में, सायन वह भाग होता है जो वांछित गुणों जैसे उच्च गुणवत्ता वाले फल या फूल प्रदान करता है, जबकि रूटस्टॉक वह भाग होता है जो मजबूत जड़ प्रणाली और रोग प्रतिरोधकता प्रदान करता है। दोनों भागों के संवहनी ऊतकों (vascular tissues) को सावधानीपूर्वक मिलाकर जोड़ा जाता है, ताकि पोषक तत्वों और जल का प्रवाह सुचारु रूप से हो सके
कृषि में ग्राफ्टिंग के लाभ
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रोग प्रतिरोधकता: रूटस्टॉक के रूप में रोग-प्रतिरोधी पौधों का उपयोग करके मिट्टी जनित रोगों से सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है।
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उन्नत उपज और गुणवत्ता: ग्रहणशील सायन के साथ ग्राफ्टिंग करने से फल की गुणवत्ता और उत्पादन में वृद्धि होती है।
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आकार नियंत्रण: बौने रूटस्टॉक का उपयोग करके पौधों के आकार को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे उच्च घनत्व वाली बागवानी संभव होती है।
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पर्यावरणीय अनुकूलता: विभिन्न जलवायु और मिट्टी की परिस्थितियों में अनुकूलन के लिए उपयुक्त रूटस्टॉक का चयन किया जा सकता है।
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त्वरित फलन: ग्राफ्टेड पौधे बीज से उगाए गए पौधों की तुलना में जल्दी फल देने लगते हैं।
ग्राफ्टिंग की सामान्य विधियाँ
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व्हिप और टंग ग्राफ्टिंग: सायन और रूटस्टॉक पर तिरछे और इंटरलॉकिंग कट लगाकर उन्हें जोड़ा जाता है।
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क्लेफ्ट ग्राफ्टिंग: रूटस्टॉक में एक चीरा लगाकर उसमें सायन को डाला जाता है; यह विधि तब उपयोगी होती है जब रूटस्टॉक का व्यास सायन से बड़ा होता है।
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स्प्लाइस ग्राफ्टिंग: यह विधि हर्बेसियस पौधों के लिए उपयुक्त है, जिसमें दोनों भागों पर तिरछे कट लगाकर उन्हें जोड़ा जाता है।
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बडिंग: इसमें सायन के रूप में केवल एक कली का उपयोग किया जाता है, जिसे रूटस्टॉक में लगाया जाता है; यह विधि फलदार वृक्षों में आम है।
कृषि में ग्राफ्टिंग का अनुप्रयोग
ग्राफ्टिंग का उपयोग विभिन्न फसलों में किया जाता है
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फलदार वृक्ष: सेब, आम, और खट्टे फलों के वृक्षों में ग्राफ्टिंग से उच्च गुणवत्ता वाले फल और रोग प्रतिरोधकता प्राप्त की जाती है।
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सब्जियाँ: टमाटर, खीरा, और बैंगन जैसे सब्जियों में ग्राफ्टिंग से मिट्टी जनित रोगों से सुरक्षा और उपज में वृद्धि होती है।
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सौंदर्य पौधे: गुलाब और अन्य फूलों वाले पौधों में ग्राफ्टिंग से सुंदरता और सहनशीलता बढ़ाई जाती है।
महाराष्ट्र के देवगढ़ क्षेत्र, जो हापुस आम के लिए प्रसिद्ध है, में ग्राफ्टिंग तकनीक का उपयोग करके उच्च गुणवत्ता वाले आम के पौधे तैयार किए जाते हैं, जिससे उनकी विशिष्टता और गुणवत्ता बनी रहती है।